बेतिया : जितना आसान नहीं होता शैलेन्द्र दीक्षित बनना, उतना ही आसान नहीं, उनके दिवंगत होने की सूचना पर विश्वास करना। लेकिन नीयति का विधान यश लेकर सबकुछ छोड़कर सभी को एक दिन चले जाना है।
संपादक जी के जीवन की विशेषता की लंबी सूची है। जिसमें उन्हें पत्रकार बनाने की मशीन भी कहा गया है, इसलिए पटना में संपादक जी पर्याय के रुप में जाने जाते रहे। लेकिन शैलेन्द्र जी जीवन में पत्रकार ठोक-पीटकर, मांजकर, झल्लाकर-हल्लाकर, हंसकर, बर्दाश्त कर उन्होंने कइयों को बना डाला। उन्होंने पत्रकारों को प्लेटफॉर्म ही नहीं रोजी रोटी का प्रबंध भी किया।
बिफोर प्रिंट डिजिटल व साप्ताहिक कैसे चले इसके लिए काफी गंभीर रहे। मेरी बात हुई कि पटना में भेंट करेंगे, तो उन्होंने कहा कि कानपुर में कार्यालय सेटअप हो चुका है। कानपुर में जाकर मिलने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी, संपादक जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। बेतिया के पत्रकारों में राजीव रंजन झा, श्रीनिवास गौतम, हृदयानन्द सिंह यादव, कैलाश यादव, रोहित पाठक, मनोज कुमार गुप्ता ने अवधेश कुमार शर्मा के नेतृत्व में संपादक जी के लिए शोक मनाया। बेतिया के पत्रकारों ने श्रद्धांजलि अर्पित किया।