Kanpur, Bhupendra Singh| कानपुर के श्रीआनंदेश्वर मंदिर (परमट), के ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी को बाबा घाट मंदिर के बाहर गंगा के तीरे भू-समाधि दे दी गई। श्यामगिरी को जूना अखाड़ा के साधु-संतों ने भू-समाधि दी। किसी भी बवाल से निपटने के लिए जिला पुलिस प्रशासन ने मुकम्मल इंतजाम कर रक्खा था। सुरक्षा का तीन स्तरीय घेरा ऐसा था कि कोई भी परिंदा पर न मार सके। श्यामगिरी के शिष्यों रामदास उर्फ अमरकंटक महराज और चैतन्य गिरी जब अपने भक्तों के साथ बाबा घाट जाने की कोशिश करने लगे तो बैरीकेडिंग पर पैरामिलेट्री फोर्स के साथ मौजूद पुलिस अफसरों ने सभी को रोक लिया। पुलिस और श्यामगिरी के शिष्यों के बीच बाबा घाट पर जाने को लेकर काफी देर तक जद्दोजहद मची रही। इस बीच मौके पर मौजूद पुलिस के अफसर ने बड़े हाकिम से बातचीत कर पूरे मामले से अवगत कराया। किसी तरह की कोई टकराहट न हो सके। इस लिए बड़े हाकिम के निर्देश पर पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच अमरकंटक और चैतन्य गिरी समेत कई लोगों को बाबा घाट पर ले जाया गया।
श्यामगिरी के चेलों के पहुंचने से पहले उन्हें भू-समाधि दी जा चुकी थी। मौके पर पहुंचे अमरकंटक और चैतन्य गिरी व उनके भक्तों ने अपने गुरु को पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें प्रणाम किया। इस दौरान पुलिस बल चारो तरफ से साधु-संतों को घेरे रहा। अमरकंटक और चैतन्य गिरी महाराज ने कहा कि श्रीआनंदेश्वर मंदिर की सदियों पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा को आज जूना अखाड़े के लोगों ने लोप कर दिया। दोनों शिष्यों ने आरोप लगाया कि उन्हें न तो सूचना दी गई और न ही बुलाया गया। जब वह लोग अपने भक्तों के साथ बाबा घाट जाने लगे तो पुलिस प्रशासन की मदद से उन्हें बैरीकेडिंग पर ही रुकवा लिया गया। ताकि वह लोग भू-समाधि देने से वंचित रह जाएं और ऐसा हो भी गया। वह लोग अंतिम में पहुंचे। सिर्फ पुष्प अर्पित कर ब्रम्हलीन महाराज को प्रणाम कर पाए।
श्यामगिरी के शिष्यों को समाधि स्थल जाने से रोकते पुलिस के अधिकारी।
अमरकंटक ने जूना अखाड़े पर तमाम तरह के आरोपों की बौंछार करते हुए कहा कि भू-समाधि का जो समय दिया गया था उससे करीब ढाई घंटा पहले 8.30 बजे ही समाधि दे दी गई। आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई गई …? बकौल अमरकंटक उन्हें अपने गुरु के ब्रम्हलीन होने की खबर तक नहीं दी गई। जूना अखाड़ा उनके गुरु की भू-समाधि से कहीं अधिक उन लोगों को पुलिस प्रशासन से रुकवाने के लिए पूरे समय व्याकुल और आतुर रहा।
कौन बनेगा श्यामगिरी की गद्दी का उत्तराधिकारी…?
ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी को भू-समाधि दे दी गई है लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर उनकी गद्दी का उत्तराधिकारी कौन बनेगा …? गुरु-शिष्य की परंपरा (वंशावली) चलेगी या फिर जूना अखाड़ा शासन-प्रशासन की कृपा से मंदिर के महंत की गद्दी पर काबिज होगा…? इसे लेकर मंदिर और ब्रम्हलीन महंत के भक्तों के बीच चर्चा और बहस जारी है।
क्या मंदिर पर बैठेगा रिसीवर ..?
महंत के उत्तराधिकारी के साथ-साथ रिसीवर को बैठाने की भी चर्चा तेज हो रही है। श्रीआनंदेश्वर मंदिर के भक्तों के एक WhatsApp ग्रुप में रिसीवर बैठाने की पोस्ट देखने को मिल सकती है। तमाम भक्तों का कहना है कि मंदिर में काफी मोटा चढ़ावा आता है। जिसका लंबे समय से बंदरबांट हो रहा है। मंदिर के जीर्णोद्धार में एक पैसा भी नहीं लगता है। मंदिर में कई अन्य तरह से भी पैसा (श्रंगार) आदि का आता है। कुछ ऐसा ही विवाद वर्ष 2011 में ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी और उनके सबसे बड़े शिष्य रामदास उर्फ अमरकंटक के बीच हुआ। जिसके बाद गोली तक चली थी और ब्रम्हलीन महंत को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। जिला प्रशासन तब डेढ़ महीने तक हलकान था। जूना अखाड़ा के प्रभाव में अफसर कार्रवाई करने के बजाय बैकफुट पर खड़े नजर आ रहे थे लेकिन जब कई साधु-संतों के अपराध की “कुंडली” मिली तो तत्कालीन अफसरों ने श्यामगिरी को Arrest कर लिया।
तत्कालीन ACM ने बनाई थी एक विस्तृत रिपोर्ट
श्रीआनंदेश्वर मंदिर में वर्ष 2011 विवाद जब बढ़ा तो तत्कालीन जिलाधिकारी ने अपर नगर मजिस्ट्रेट (ACM) राजकुमार को पूरे प्रकरण की गहराई से जांच कराई थी। जिसके बाद उन्होंने मंदिर में अब तक हुए सभी अपराधिक मुकदमों का ब्यौरा संकलित करने के साथ-साथ कुछ साधु-संतों की अपराधिक कुंडली का इंतिहास भी खंगालकरक रिपोर्ट सौंपी थी। यह रिपोर्ट तत्कालीन सपा सरकार के पास भी भेजी गई थी लेकिन उसी के कुछ महीने बाद विधान सभा चुनाव में सपा की हार हुई और बसपा की सरकार बन गई। जिसके बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। सूत्रों की मानें तो उस समय भी विवाद को शांत करने के लिए रिसीवर बैठाने की बात जिला प्रशासन ने रक्खी थी।
कागजों पर बेहद मजबूत हैं श्यामगिरी के शिष्य
मंदिर में चली आ रही सदियों पुरानी गुरु-शिष्य की परंपरा हो या फिर अब तक मंदिर के संबंध में लड़े गए सिविल के मुकदमें…सभी में जीत मंदिर के महंतों की ही हुई है। जिला अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक मंदिर के महंतों को जीत मिली। लेकिन दूसरी सच्चाई ये है कि श्यामगिरी के सभी शिष्यों को मंदिर से Out किया जा चुका है। वहीं जूना अखाड़ा अपने रसूख और प्रभाव का इस्तेमाल कर मंदिर पर पूरी तरह से काबिज है। अब देखने वाली बात ये है कि जूना अखा़ड़ा अपने किसी साधु को मंदिर की गद्दी पर बैठाएगा है ..? या फिर व्यवस्थापकों की नियुक्ति कर पूरे मामले से बचने की कोशिश करेगा..? मंदिर पर यदि किसी की नियुक्ति भी जूना अखाड़ा करता है तो किस आधार पर करेगा ..? देखना ये भी होगा कि श्यामगिरी के सभी शिष्य अदालत की चौखट पर जाएंगे या फिर कानपुर के अफसरों की ड्योढी पर चक्कर लगाएंगे।