बीपी डेस्क। यूपी के मेरठ में सरधना क्षेत्र के बहादरपुर गांव निवासी अन्नू रानी ने बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में जैवलिन थ्रो में कांस्य पदक भारत की झोली में डाल दिया है। अन्नू रानी के ब्रॉन्ज जीतते ही उनके परिवार और गांव में खुशी का माहौल है। अन्नू रानी ने महिलाओं की जैवलिन थ्रो प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीत लिया है।
उनका सबसे बेहतरीन प्रयास 60 मीटर का रहा। वहीं, ऑस्ट्रेलिया की केल्सी ने 64 मीटर की दूरी के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया। बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलीट अन्नू रानी से भाला फेंक प्रतियोगिता में देश को गोल्ड की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा।
बता दें कि चोटिल होने की वजह से नीरज चोपड़ा प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया था। ऐसे में पदक का पूरा दारोमदार मेरठ की बेटी अन्नू रानी पर था। अन्नू रानी का अपने खेत की चकरोड़ से बर्मिंघम तक पहुंचने का सफर बेहद दिलचस्प रहा है।
गांव से बर्मिंघम तक दिलचस्प रहा अन्नू का सफर
भाला फेंक प्रतिस्पर्धा की खिलाड़ी अन्नू ने केरल में आयोजित 25वें नेशनल फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 61.15 मीटर के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाकर एशियन गेम्स व कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भी जगह पक्की कर ली थी।
सरधना के बहादरपुर गांव निवासी अन्नू रानी ने गांव की चकरोड़ से अभ्यास कर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक परचम लहराया है। 2022 टोक्यो ओलंपिक में स्वास्थ्य खराब होने के कारण अन्नू पदक जीतने से चूक गईं थीं। लेकिन बर्मिंघम में उन्होंने पदक की चाहत को पूरा कर दिखाया।
जैवलिन क्वीन के नाम से पहचानी जाने वाली अन्नू के संघर्ष की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। गांवों की पगडंडियों पर खेलते और गन्ने को भाला बनाकर प्रैक्टिस करने वाली अन्नू एक दिन विदेश में होने वाली प्रतिस्पर्धाओं में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा, लेकिन अपने संघर्ष और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने ये कर दिखाया। अब वह जीत के इरादे से मैदान पर उतरेंगीं।
पिता ने रोका तो चोरी से किया अभ्यास
अन्नू रानी तीन बहन व दो भाइयों में सबसे छोटी हैं। उनके सबसे बड़े भाई उपेंद्र कुमार भी 5,000 मीटर के धावक थे और विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा भी ले चुके हैं। बड़े भाई के साथ अन्नू रानी ने भी खेल में रुचि दिखाई और सुबह चार बजे उठकर गांव में ही रास्तों पर दौड़ने जाया करतीं।
कई बार पिता ने अन्नू खेल में दिलचस्पी नहीं दिखाई तो अन्नू चोरी से अभ्यास करतीं। अन्नू यहां किसी ग्राउंड में नहीं, बल्कि कच्चे संकरे रास्ते जिसे ग्रामीण भाषा में चकरोड़ कहा जाता है, उस पर दौड़तीं। इसी चकरोड़ पर गन्ने को भाला बनाकर वह पहले जोर से फेंकती। उन्होंने यह प्रयास कई महीनों तक जारी रखे।