कानपुर, भूपेंद्र सिंह। अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम ग्रीनपार्क में खेलों को विस्तार देने के लिए स्क्वैश कोर्ट और कवर्ड तरणताल की योजनाओं की स्वीकृति मिली थी जोकि खेल अधिकारी की हठधर्मिता रवैये के चलते पूरी नही हो सकी। जिसके लिए संबंधित विभाग से धनराशि भी जारी कर दी गई थी। हालांकि इन दोनो खेलों की योजनाओं के साथ ही अन्य इन्डोर खेलों के लिए ग्रीनपार्क से दूर पालिका स्टेडियम में बनकर तैयार अवश्य हो रहे हैं लेकिन खिलाडियों को ग्रीनपार्क में इन योजनाओं पर अमल न किया जाना अखर रहा है। खिलाडिय़ों को इन योजनाओं का इंतजार लंबे समय से था।
ग्रीनपार्क स्टेडियम में राष्ट्रीय मानक का स्क्वैश कोर्ट और कवर्ड तरणताल की योजनाओं के बन जाने से सैकड़ों खिलाडिय़ों को इन खेल विधाओं में लाभ मिलता। परंतु स्मार्ट सिटी द्वारा बनने वाला स्क्वैश कोर्ट और नगर निगम की ओर से निर्माण किए जाने वाला कवर्ड तरणताल धनराशि जारी होने के बाद भी नहीं बन पाया। इन खेलों को ग्रीनपार्क में शुरु न किए जाने के पीछे की वजह जगह को बताया गया जबकि अभी भी वहां पर लगभग एक से डेढ एकड जमीन पर कबाड़ पड़ा सड़ रहा है।
सूत्रों के मुताबिक स्मार्ट सिटी और नगर निगम में इन योजनाओं द्वारा धनराशि जारी होने के बाद खेल विभाग के अधिकारियों ने रुचि नहीं दिखाई। यही नही जब निवर्तमान आरएसओ अजय सेठी ने इन योजनाओं के प्रति रुचि दिखायी और बजट तक पास करा लिया इसी बीच उनका ट्रान्सफर हो गया और नई अधिकारी ने पिच क्यूरेटर के साथ मिलकर एक साजिश के तहत उन योजनाओं को स्थानान्तरित करवाने में सफलता हासिल कर ली। जिसके चलते इन योजनाओं का पैसा दूसरी व्यवस्थाओं को पूरा करने में लगा दिया गया।
तत्कालीन क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी अजय कुमार सेठी ने बताया कि इन योजनाओं के बन जाने से खेल और खिलाडिय़ों का विकास होता। आगामी प्रतियोगिताओं के लिए ग्रीनपार्क आयोजकों की पहली पसंद बनता। वहीं, उप निदेशक खेल ने बताया था कि योजनाएं पालिका स्टेडियम में बन रहे स्पोट्र्स कांप्लेक्स में शिफ्ट हो गई है।वहां पर उचित स्थान और खेल का फायदा खिलाडिय़ों को मिलेगा।
हालांकि खिलाडिय़ों में अव्यवस्था के चलते निराशा का माहौल व्याप्त हो गया था जो आज भी कायम है। वर्जन-ग्रीनपार्क जैसे स्टेडियम में राष्ट्रीय मानक का स्क्वैश कोर्ट और कवर्ड तरणताल की योजनाओं के बन जाने से सैकड़ों खिलाडिय़ों को इन खेल विधाओं में लाभ मिलता। अगर एक ही स्थान पर अन्य खेलों के साथ इन खेलों को सीखने और खेलने की सुविधा मिलती तो खिलाडियों को इधर-उधर भटकना नही पडता। आशु सोनकर-खो-खो खिलाडी कानपुर।