कानपुर, बीपी प्रतिनिधि। कानपुर मेडिकल कॉलेज इतिहास में पहली बार एक आयुर्वेदिक दवा का अपने शोध में शामिल करने जा रहा है। इसको लेकर एक डॉक्टरों की टीम बनाई गई है। शोध के सफल होने पर एलर्जी राइनाईटिस बीमारी का आयुर्वेदिक दवा से एलोपैथिक दवा के साथ तुलना की जाएगी। इसके प्रयोग के लिए दो-दो सौ मरीज पर शोध की तैयारी मेडिकल कॉलेज द्वारा कर ली गई है।
गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों द्वारा एक विशेष तरीके का शोध किया जा रहा है। जिसमें अस्पताल प्रशासन धूल, मौसम में बदलाव व प्रदूषण आदि से होने वाली एलर्जी की समस्याओं जैसे बीमारियां शामिल हैं।
डॉक्टरों की माने तो इसमें जिन व्यक्ति व बच्चे को एलर्जी राइनाईटिस (सर्दिला कोठा) होता है उनको इस प्रकार की एलर्जी की आशंका सबसे ज्यादा होती है। यह लाइलाज बीमारी है। एलोपैथिक दवा देने के बाद कुछ समय के लिए तो इससे आराम मिलता है लेकिन फिर वही समस्या होने लगती है। इसको लेकर उत्तराखंड के पद्श्री आयुर्वेदाचार्य वैद्य डॉ बालेंदु प्रकाश के द्वारा अपने स्तर पर दो चरण में एक हर्बल दवा दी जा रही है, जिससे इस बीमारी को जड़ से खत्म करने सफलता मिली है।
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ संजय काला ने बताया है कि प्रधानमंत्री द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के जरिए चिकित्सा पद्धति को प्रमोट करने के लिए आयुर्वैदिक दवा का एक क्लीनिकल ट्रायल हम करने जा रहे हैं। इसमें इंगो हर्बल नाम की एक बीमारी का इलाज आयुर्वैदिक व एलोपैथी दोनों विधाओं से किया जाएगा। इस रोग से काफी सारे लोग पीड़ित हैं। फिलहाल जो एलोपैथिक दवाएं हैं उनसे आराम तो मिलता है। मगर वह फौरी होता है।
इसी क्रम में मेडिकल कॉलेज में एक ट्रायल होने जा रहा है जिसमें दो-दो सौ लोगों के दो ग्रुप बनाए जाएंगे। जिन पर शोध किया जाएगा। दोनों प्रकार के मरीजों को हम एलोपैथिक व आयुर्वैदिक दवाइयां देंगे और जो बाद में परिणाम आएगा उसके आधार पर इस दवा के इस्तेमाल पर फैसला लिया जाएगा।
शोध टीम को लीड करने वाले डॉ यशवंत राय ने बताया डॉ बालेंदु की दवा एक इंगो हर्बल उत्पाद है। जिसमें दावा किया जाता है कि उसके इलाज से एजर्ली वाले मरीजों को निजात मिल जाती है। जब भी मौसम बदलता है तब यह बीमारी जुकाम, खांसी, झींक व पानी आने जैसे समस्या के रूप में सामने आती है। बच्चे और बुजुर्ग सभी उम्र के लोग इससे परेशान रहते हैं। एलोपैथिक में इलाज इसके लिए शॉर्ट टर्म रिलीफ तो मिलता लेकिन जड़ से बीमारी खत्म नहीं होती। इसको लेकर एक हर्बल दवा के साथ हम शोध करने जा रहे हैं, इसके सफल परिणाम आने पर एलोपैथिक में भी इसका इलाज संभव हो सकेगा।
डॉ चयनिका काला ने बताया कि इस शोध में मेडिसिन के अलावा पैथालॉजी को भी शामिल किया गया है। इसके लिए जिन मरीजों को ट्रायल में शामिल किया जाएगा, उनकी दो तरह से मानीटरिंग की जाएगी। इसमें लाभ के साथ साथ मरीज के स्वास्थ्य की निगरानी बहुत जरूरी है। इसके लिए लीवर, किडनी व यूरिन की जांच लगातार की जाएगी। हफ्ते में दो बार जांच की रिपोर्ट तैयार कर दवा के परिणाम को देखा जाएगा।