Kanpur : छात्रों को करके शिक्षा से दूर, प्रोफ़ेसर कर रहे क्रिकेटिंग टूर

उत्तर प्रदेश कानपुर

Kanpur : अर्थव्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण विषय पर महारथ हासिल करने वाले प्रोफ़ेसर अब बच्चों को शिक्षा देने के बजाय क्रिकेटिंग टूर में व्यस्त हैं| शैक्षिक सत्र के बीच में ही महाविद्यालय में उनकी गैरमौजूदगी पर ना ही उनसे महाविद्यालय का प्रबन्धन ही कोई सवाल कर रहा है और न ही शासन में बैठे हुए शिक्षा जगत के आला अधिकारी| उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व सचिव बीते कई महीनों से महाविद्यालय की शैक्षिक गतिविधियों से नदारद हैं और उससे अधिक क्रिकेट की गतिविधियों को निरन्तर संचालित करने में व्यस्त हैं। यही नही महाविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया के दौरान वह भारतीय क्रिकेट टीम के साथ आयरलैण्ड और इंग्लैण्ड चले गए थे। जहां एक ओर देश व प्रदेश की सरकारें शिक्षा को बढ़ाने के लिए बहुउद्देशीय प्रयास कर रही हैं। वही उनके प्रयास को विफल करने में भी इस तरह के लोग शिक्षा का माखौल उड़ाते दिखाई दे रहे हैं। मेरठ महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जो अर्थशास्त्र के ज्ञानी भी हैं।

वह प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व सचिव और संघ में निदेशक पद पर आसीन युद्धवीर सिंह अर्थशास्त्र जैसे महत्वपूर्ण विषय छात्रों को पढाने के बजाय उनके साथ अन्याय करते नजर आ रहे हैं। वह शिक्षा में ध्यान न देकर क्रिकेट को संचालित करने में अधिक महत्व दे रहे हैं। बीते कई दिनों से वह लखनऊ में रहकर 6 तारीख को होने वाले मैच की तैयारियों में भी जुटे हैं।जबकि कोरोना के बाद खुले स्कूल और महाविद्यालयों में पढ़ाई पर ध्यान देना शायद आवश्यक हो।

गौरतलब यह भी है कि मेरठ महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर व प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के निदेशक व पूर्व सचिव युद्धवीर सिंह के खिलाफ महाविद्यालय के कुछ लोगों ने उनकी शैक्षणिक गतिविधियों मैं शून्यता रखने के लिए शिकायत भी दर्ज कराई थी लेकिन प्रबधतन्त्र से सांठगांठ के चलते उनपर कार्यवाई के बजाय मेहरबानी अवश्‍य दिखायी दी। वह इतनी लंबी छुट्टियों पर चले जाते हैं इस पर भी महाविद्यालय की ओर से कोई कार्यवाही शायद ही की गयी हो।

वर्जन-शिक्षा का स्तर उठाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं चला रही है, लेकिन जिम्मेदार लोगों की लापरवाही से सरकार के प्रयास पर पानी फिर जा रहा है। कहीं प्रोफेसर समय से महाविद्यालय नहीं पहुंच रहे हैं, तो कहीं कमरों में बैठकर क्रिकेट संघ संचालित कर रहे हैं। ऐसे में बेहतर शिक्षा प्रणाली की कैसे उम्मीद की जा सकती है।– सौरभ श्रीवास्तव –छात्र-वीएसएसडी-महाविद्यालय कानपुर।