Kanpur : अंतत : वही हुआ जिसकी आशंका जताई जा रही थी। लाखों भक्तों की आस्था के केंद्र श्रीआनंदेश्वर मंदिर (परमट) कानपुर के महंत की गद्दी पर जूना अखाड़ा ने गुरु-शिष्य परंपरा का लोप कर कब्जा कर लिया। महंत की गद्दी पर जूना अखाड़ा ने अपने चार पदाधिकारियों के नियुक्ति की घोषणा की। खास बात ये रही कि जूना अखाड़ा ने जिला प्रशासन के अफसरों को भी विश्वास में नहीं लिया। यहां तक की किसी भी प्रशासनिक अफसर को बुलाया तक नहीं गया। भक्तगणों को भी नहीं बुलाया गया। महंत की गद्दी को लेकर पकी “खिचड़ी” जूना अखाड़ा के बीच रही। उधर, इंटेलीजेंस ने भी इस पूरे प्रकरण की एक विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेज दी है। खुफिया अफसरों की मानें तो तमाम बार जूना अखाड़े से मंदिर के महंत की गद्दी को लेकर चल रहे प्रकरण के बाबत कागजात मांगे गए लेकिन जूना अखाड़ा के पदाधिकारियों ने अभी तक कोई साक्ष्य, प्रमाण या फिर कागजत नहीं सौंपे।
दो प्रशासनिक अफसरों ने भी जूना अखाड़े से कागजात मांगे हैं लेकिन अखाड़ा अभी तक कोई कागज नहीं दे सका है। मंदिर के महंत की गद्दी पर कब्जा होने के बाद ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी के बड़े शिष्य रामदास उर्फ अमरकंटक का कहना है कि उन्होंने पूरे प्रकरण की शिकायत जिला प्रशासन के अफसरों से लेकर शासन में बैठे बड़े अफसरों से करते हुए एसआईटी जांच की मांग की है। श्रीआनंदेश्वर मंदिर परिसर में जूना अखाड़ा के पदाधिकारियों ने सभी पुरानी व्यवस्थाओं को ताक पर रखते हुए चार साधु-संतों को मंदिर की देखरेख के लिए नियुक्ति कर दी। जिनकी नियुक्ति की गई है उसमें पहले नंबर पर हरिगिरी, प्रेमगिरी, उमाशंकर भारती, नारायण गिरी, केदार पुरी के नाम हैं। इसमें हरि गिरी मुख्य रहेंगे।
उनके नीचे सभी चार-साधु संत कार्यभार देखेंगे। यदि जूना अखाड़े के पास कोई ठोस कागजात नहीं है तो फिर मंदिर की गद्दी पर उनका कब्जा क्यूं और किसकी शह पर हो गया …? आखिर क्या वजह है कि प्रशासन जूना अखाड़ा के लोगों को बुला तक नहीं पा रहा है…? जबकि जूना अखाड़ा के लोगो सारी परंपराओं को ताक पर रखकर अपनी मनमानी करने पर पूरी तरह से आमादा हैं। सवाल ये भी उठता है कि यदि सबकुछ निष्पक्ष हो रहा है तो प्रशासन की तरफ से अभी तक किसी एक ऐसे अफसर को इस पूरे प्रकरण की जिम्मेदारी क्यों नहीं दी गई…? जिससे पूरे प्रकरण की जांच जल्द हो सके।
जबकि वर्ष 2011 में भी जब मंदिर प्रकरण का मुद्दा गर्माया था तो तत्कालीन जिलाधिकारी ने एडीएम औैर एसीएम को विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपते हुए उनसे रिपोर्ट मांगी थी। उस समय भी जूना अखाड़ा के पदाधिकारी प्रशासनिक अफसरों को कोई कागजात नहीं दे सके थे। बीएसपी की सरकार थी जिसकी वजह से जूना अखाड़ा को “बैकफुट” होना पड़ा था लेकिन वर्तमान में हालात कुछ और हैं। सत्ता की सरपरस्ती में ही सबकुछ हो रहा है।