— 10 दिनों के भीतर जरूरी दस्तावेज पेश ना करने पर हो सकता है जुर्माना या कार्यवाही
कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन पर अब कारपोरेट मंत्रालय ने अपना शिकंजा पूरी तरह से कस दिया है। मंत्रालय ने यूपीसीए के खिलाफ सही और जरूरी दस्तावेज पेश न किए जाने का मामला पाया है जिसमें कई निदेशकों समेत संघ के मुख्यालय को अब अंतिम नोटिस भेज दिया गया है। मन्त्रांलय की संयुक्त निदेशक की ओर से जारी नोटिस में यह भी दर्शाया गया है कि अगर 10 दिनों के भीतर संघ ने सभी प्रकार के दस्तावेज पेश नहीं किए तो निदेशको समेत अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ अनियमितताओं का मुकदमा पंजीकृत कराया जाएगा जिसमें जुर्माने से लेकर जेल तक का प्रावधान सुनिश्चित है।
गौरतलब है कि यूपीसीए ने कारपोरेट मंत्रालय को धता बताते हुए कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 206(5) के तहत विभिन्न प्रकार के नियमों का उल्लंघन किया है जिसमें कंपनी की पुस्तकों और कागजात के निरीक्षण के मामले में 14.10.2022 द्वारा जारी पत्र के क्रम में, यह सूचित करते हुए प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था लेकिन यूपीसीए के पदाधिकारियों ने कारपोरेट मंत्रालय को धोखे में रखकर कोई भी दस्तावेज समय पर उपलब्ध नहीं कराए जिससे मंत्रालय के आला अधिकारी खासे नाराज हो गए। हालाँकि, यूपीसीए ने मन्त्रालय से दस्तावेज़ों को जमा करने के लिए और समय मांगा था लेकिन वह भी तय समय पर जमा नही करवा पाने में सफल नही हो सके थे।
कारपोरेट मंत्रालय के अधिकारियों ने यूपीसीए के निदेशकों को 31.01.2023 उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया था, लेकिन कोई भी उपस्थित नहीं हुआ और समय बढ़ाने का अनुरोध किया। सभी निदेशकों ने समय बढ़ाने की मांग करते हुए अपनी प्रतिक्रिया में इसी तरह कहा कि कंपनी के निर्णय लेने में उनकी बहुत सीमित भूमिका है क्योंकि कंपनी के मामलों का प्रबंधन सर्वोच्च परिषद द्वारा किया जा रहा है और कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में उनकी कोई भूमिका नहीं है। इसके बाद फिर से बुलाए जाने पर 16.02.2023 और 23.02.2023 को संघ के निदेशक अशोक चतुर्वेदी ने उपस्थित होकर अपना निजी पक्ष रखा।
यूपीसीए के बही खातों को सत्यापित करने के लिए, कॉर्पोरेट मन्त्रालय ने कार्यालय का दौरा किया, जहां यह पाया गया कि कंपनी के कोई भी निदेशक व्यवसाय के घंटों के दौरान उपरोक्त पते पर मौजूद नहीं थे और न ही कोई किताबें और कागजात, एजीएम/शीर्ष परिषद/निदेशक मंडल के कार्यवृत्त और अन्य बैठकों और वैधानिक रजिस्टर के रूप में मौजूद थे। कंपनी अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुसार सदस्यों के रजिस्टरों, पदाधिकारियों और निदेशकों के रजिस्टरों का रखरखाव किया जा रहा था। यूपीसीए के वित्तीय मामलों में हस्ताक्षर करने वाले निदेशक प्रेम मनोहर गुप्ता और रियासत अली को 15.03.2023 को पेश होने के लिए बुलाया गया था। हालांकि, न तो वे उपस्थित हुए और न ही उक्त सम्मन का कोई जवाब पेश किया।
कारपोरेट मंत्रालय ने माना है कि निरीक्षण एक समयबद्ध प्रक्रिया है और यह कंपनी और उसके निदेशकों को दिया जाने वाला अंतिम अवसर है, जिसमें विफल होने पर कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 207(4)(i) के तहत कार्यवाही शुरू की जाएगी। नियमों में साफ है कि यदि कंपनी का कोई निदेशक या अधिकारी इस धारा के तहत रजिस्ट्रार या निरीक्षक द्वारा जारी किए गए निर्देश की अवहेलना करता है, तो निदेशक या अधिकारी को एक वर्ष तक के लिए कारावास भी दिया जा सकता है।
यही नही निर्देश की अवहेलना पर जुर्माने का भी प्रावधान है जो पच्चीस हजार से लेकर एक लाख रुपये तक का हो सकता है। यूपीसीए के सूत्र बतातें है कि इस प्रकरण को लेकर बीते माह लखनऊ के इकाना स्टेडियम में एक बैठक आहूत की गयी थी जिसमें पूर्व सचिव ने देश की वित्त मन्त्री से मिलकर मामले का निस्तारण होने का भरोसा जताया था। इस बात से खुश होकर संघ के पदाधिकारियों ने पूर्व सचिव का फूल मालाओं से सम्मान भी किया था। यूपीसीए के एक विशेष पदाधिकारी ने बताया कि जब यह सब हो चुका था तो अब मन्त्रालय की चिटठी नही आनी चाहिए थी।