-चयनकर्ताओं की नियुक्ति में भी लगती है अंतिम मुहर यहीं से
कानपुर, बीपी डेस्क। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ की किसी भी आयु वर्ग की टीम में खिलाडियों को खेलना हो तो उसे सहारनपुर की खिडकी से प्रवेश का टिकट लेना अनिवार्य होगा। यही नही जो सदस्य किसी टीम को चुनने के लिए दल में शामिल होंगे उनकी भी नियुक्ति उसी जिले से की जाएगी। ये बात अलग है कि उस फाइल पर हस्ताक्षर 238 किलोमीटर दूर हस्तिनापुर से किए जाते हैं । और तो और उसकी कार्य शैली में गोपनीयता बरतने के निर्देश साफ तौर पर जारी कर दिए गए हैं लेकिन अन्दरखाने की खबर बाहर आने से रोकना अब शायद ही किसी के बस की बात हो। इसकी बानगी अब जूनियर से लेकर सीनियर स्तर की चयन प्रक्रिया के दौरान देखने को मिल रही है।
चयन प्रक्रिया की जानकारी ही चुनिन्दा लोगों के अलावा केवल खिलाडियों और उनके अभिवावकों तक ही सीमित रखी जाती है। प्रदेश की जूनियर से लेकर सीनियर और रणजी ट्राफी में शामिल होने के लिए सहारनपुर एक्सप्रेस के टिकट होने की अनिवार्यता से इन्कार नही किया जा सकता। पर्दे के पीछे से क्रिकेटरों को टीम में शामिल करवाने के लिए कवायद बीते कई सालों से जारी है। प्रदेश की टीमों की चयन प्रक्रिया केवल दिखावे के लिए ही की जा रही है जिसमें प्रदेश भर के सभी छोटे जिलों से आने वाले क्रिकेटर अपने खर्च पर नगर आकर उसमें शिरकत करते हैं दिक्कत ये नही कि वह चयन प्रक्रिया में शामिल होते हैं दिक्कत तो इस बात की है उन्हे बैरंग अपने घर वापस लौटना पड जाता है।
टीम के चयन की प्रक्रिया सहारनपुर से संचालित क्रिकेट संघ के सर्वे सर्वा के माध्यम से हस्तिनापुर से पारित होकर फिर यूपीसीए में आती है। फिर वह चाहे प्रदेश की अण्डर-14 के क्रिकेटरों की टीम का चयन हो या फिर रणजी जैसी टीम क्रिकेटरों कों सान्तवना देने के लिए सभी को अभ्यास मैच खिला दिया जाता है और उसमें भी टीम का हिस्सा वही बन पाता है जो सहारनपुर एक्सप्रेस में बैठ कर आया हो या फिर प्रभावशाली रुतबे को सलाम ठोंककर। यूपीसीए के अपने ही मैदान में चलने वाली चयन प्रक्रिया को गोपनीय रखना गले से नीचे उतरता नही दिखायी देता।
मीडिया में भी टीम की घोषणा खिलाडियों को दी गयी जानकारी के बाद दी जाती है जबकि पूर्व के दिनों में खिलाडी मीडिया से अपने चयनित होने की पुष्टि किया करते थे। अब प्रदेश की टीम का एलान ही लिफाफा बंद कागजों में होता है जिन खिलाडियों को मैच खेलने के लिए ही केवल चुना जाता है। यूपीसीए के इस रवैये से धीरे धीरे अब हर कोई वाकिफ होता जा रहा है लेकिन अपने भविष्य व कैरियर को देखते हुए बस मुंह बन्द रखना चाहता है। अब तो हद भी इतनी हो गयी है कि टीम चुनने के लिए जिन चयनकर्ताओं को रखा जाता है उनकी काबिलियत तक नही देखी जाती और कम अनुभव भी प्रभाव के आगे बौना साबित हो जाता है। इस प्रकरण में यूपीसीए का कोई भी अधिकारी बात तक नही करना चाहता।
वर्जन- यूपीसीए की टीम में शामिल होना अब इतना आसान नही रह गया है पूर्व में प्रतिभा की कदर होती थी तो कई जिलों से खिलाडी निकल कर सामने आ जाते थे। अब प्रदेश के पश्चिमी हिस्से से ही खिलाडियों का टीम में चयनित होना कहीं न कहीं किसी के दबाव को आसानी से देखा जा सकता है। अनुराग मिश्रा-पूर्व क्रिकेटर- कानपुर कानपुर ग्रीनपार्क छात्रावास।