कानपुर/भूपेंद्र सिंह । दिवाली पर्व के मद्देनजर रोशनी करने वाले विभिन्न प्रकार के आइटम बाजारों में सज गए हैं। वहीं नई तकनीकों से सुसज्जित झालरे समेत अन्य विद्युत से संचालित होने सामान दुकानों में सज गये है। हालांकि अधिकतर दुकानों ने स्वदेशी उत्पाद पर शहर के व्यापारियों ने जोर दिया है।
अधिकतर इलेक्ट्रिकल सामान कुशल कारीगरों द्वारा तैयार किया गया है। कारीगरों ने धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए ऐसे प्रोडक्ट तैयार किया है। जैसे मां लक्ष्मी गणेश की मूर्ति और घूमने वाला दीया थाली, मोर सहित अन्य तरह—तरह के रोशनी देने वाले सामान बाजार में आ चुके है। सुन्दर लगने वाली घंटी नुमा झालरे आई है।
जिसमें गोल्डन रंग, सिल्वर कलर सहित विभिन्न डिजाइनों के बने है। लगभग 90 फीसदी उत्पाद अपने देश में ही तैयार हुए है। हालांकि चाइना वाली झालरों से थोड़ा महंगी आवश्य है। फिर भी इस बार पहले की अपेक्षा अधिक स्वदेशी झालरे शहर की दुकानों में उपलब्ध है। एक ओर ऑनलाइन बाजार ने पूरे रिटेल व्याअपार ऑैर बाजार को पूरी तरह से ध्वस्त कर रखा है। तो इसके विपरीत दीपावली के लिए इलेक्ट्रा निक बाजार में दुकानदार अब भी आस लगाए बैठे हैं कि खरीददारों की भीड़ जुटे तो त्योहारी बाजार जैसा लगे।
ऑनलाइन प्रतिस्पर्धा से बाजार की जो दुकानें अछूती रह पाईं हैं तो वो हैं एलईडी और रंग बिरंगी झालरों की दुकानें क्योंकि रौशनी के पर्व दीपावली में जगमगाती झालरों का अलग ही महत्व है। लाइन प्रतिस्पर्धा के बावजूद शहर भर के रिटेल और थोक दुकानदारों को ग्राहकों का इन्तजार है और वह अपनी दुकानों में नए प्रकार के विद्युत उपकरणों के साथ ही अन्य प्रकार की लाइटों को सजा चुके हैं। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी देसी झालरों की मांग लोगों में दिखाई पड़ रही है।
700 रुपए से लेकर 1700 रुपए तक की देसी झालरों की खरीदी जोरों पर है। दुकानदारों का कहना है कि बाजार के ठंडे रुख को देखकर ज्यादातर दुकानदार इस बात पर आशंकित थे कि खरीददार आएंगे भी या नहीं। लगातार बढ़ती बिक्री ने दुकानदारों के उत्साह को भी बढ़ा दिया है।
बीते चार-पांच सालों की बात की जाए तो चाइनीज झालर का मार्केट पर लगभग 80 फीसदी कब्जा रहता था, लेकिन इस बार मार्केट का रुख अलग है. अब चाइनीज आइटम 20 फीसदी तक सीमित रह गए हैं. कानपुर के मार्केट में 80 फीसदी आइटम इंडियन हैं।. लोग स्वदेशी आइटम ज्यादा मांग रहे हैं क्योंकि अब स्वदेशी आइटम कम दामों में भी उपलब्ध हैं।. इसके अलावा यह ज्यादा टिकाऊ होते हैं और अब कई वैरायटी भी स्वदेशी आइटम की आ गई हैं।.
दुकानदार श्या.म तिवारी ने बताया कि इस साल चाइनीज झालर ना के बराबर मार्केट में है।. वही स्वदेशी झालरों की डिमांड ज्यादा है। हर कोई स्वदेशी झालर मांग रहा है. यह ज्यादा टिकाऊ भी हैं और इस बार कई तरह तरह की नई वैरायटी भी इसमें आई है।. वही स्वदेशी झालरों की कीमत की बात की जाए तो इसकी कीमत 50 रुपए से शुरू है और यह ढाई सौ से 300 रुपए तक मार्केट में उपलब्ध है।.
उन्होंढने बताया कि पिछले वर्षों की तुलना में इस बार फिक्सर पट्टा झालरों की मांग जोरों पर है। यह देसी झालरें हैं जो खराब नहीं होती। चाइना झालरों में एक एलईडी के खराब होने पर पूरी की पूरी झालर बंद पड़ जाती है लेकिन फिक्सर पट्टा में ऐसा नहीं होता। चाइना माल के प्रति लोगों में नाराजगी देखते हुए लोग फिक्सर पट्टा ही खरीद रहे हैं।
वहीं चौरसिया इलेक्ट्रिकल्स के संचालक राकेश चौरसिया ने बताया कि जिन फिक्सर पट्टा में कॉपर तार का इस्तेमाल किया जाता है वह अधिक दिनों तक सर्विस देती है। इसलिए इसकी कीमत अधिक होती है। जिन फिक्सर पट्टा को बनाने में एलार तार का इस्तेमाल किया जाता है वह कम सर्विस देने के कारण किफायती होती हैं। क्वालिटी बेस्ड होने के कारण फिक्सर पट्टा की मांग अधिक है।