-महात्मा गांधी रोड पर मेट्रो स्टेशन का नाम नयागंज क्यों
-गांधी निशाने पर क्यों गुस्से में दिखे गांधीवादी
-सोशल मीडिया पर गांधी समर्थन में चलेगा अभियान
-30 जनवरी को गांधी प्रतिमा पर एक दिनी उपवास
कानपुर,अनुपम। सच है कि महात्मा गांधी अमर है, एमजीआर गोडसे भी जिंदा हैं। देश में मौजूदा माहौल कुछ इसी तरह का है। हमारी इस गोष्ठी में जितनी बार गांधी का नाम लिया गया गोडसे का भी नाम जुबान पर आया। हमे गोडसे के नाम से भी परहेज करना चाहिए। सिविल लाइंस स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में अध्यक्ष दीपक मालवीय की अध्यक्षता में ‘महात्मा गांधी निशाने पर क्यों’ विषयक गोष्ठी में गांधी के अपमान और उनकी स्मृति को बिसारने के षड्यंत्र की कड़ी निंदा की गयी। सवाल उठाया गया की गांधी के साथ गोडसे का नाम ही क्यों लेते हैं?
गांधीवादी छोटा भाई नरोना ने कहा कि कानपुर में महात्मा गांधी मार्ग (एसएन बालिका विद्यालय) के निकट प्रस्तावित मेट्रो स्टेशन का नाम नयागंज रखने का सरकारी निर्णय अति निंदनीय है। उन्होनें सोशल मीडिया में गांधी के विचारों पर अभियान चलाने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मत से पारित किया गया। दीपक मालवीय ने कहा कि जनजागरूकता के लिए सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर अभियान के लिए किसी प्रोफेशनल को नियुक्त करके यह कार्य कराया जा सकता है।
सुझाव आया कि सोशल मीडिया पर एक्टिव प्रत्येक गांधीवादी फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सअप पर पूरी जिम्मेदारी के साथ गांधी के विचारों, रोचक और प्रेरक प्रसंगों की प्रस्तुति दे। प्रोफेसर प्रभात वाजपेयी ने इतिहास के आईने में गांधी के व्यक्तित्त्व और कार्यों को बताया। उन्होंने कहा कि गांधी के समानांतर कोई है ही नहीं। फारुख ने स्कूलों क्विज प्रोग्राम के माध्यम से बच्चों में गांधी के प्रचार-प्रसार की जरूरत बताई।
अतहर नईम ने 30 जनवरी को गांधी प्रतिमा के नीचे एक दिनी उपवास का प्रस्ताव रखा। प्रताप ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव पर गांधी और सुभाष के फॉलोवर क्रांतिकारियों को विस्मृत करने का षड्यंत्र चल रहा है। उन्होनें कर्नल पीके सहगल के योगदान को अमृत महोत्सव वर्ष में हाशिये पर रख दिया। उनके नामपर एक उजाड़ पार्क उजाड़ पीडीए है जिसका कोई पुरसाहाल नहीं है। विष्णु शुक्ल ने बैठकों में लिए गए निर्णयों पर अमल की बात कही। कमल कांत तिवारी, विनोद पांडेय, के के अग्निहोत्री आदि ने भी विचार व्यक्त किये। संचालन सुरेश गुप्ता ने किया।