स्टेट डेस्क। ज्ञानवापी परिसर की जीपीआर और रडार जांच के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने आईआईटी कानपुर से मदद मांगी है। आईआईटी निदेशक प्रोफेसर अभय करंदीकर ने कहा कि हम प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं। संस्थान के विभिन्न विभागों के वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श किया जाएगा। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि एएसआई की जरूरत के अनुसार, हम कितनी मदद कर सकते हैं।
ज्ञानवापी परिसर में बगैर कोई छेड़छाड़ किए पुरातात्विक महत्व की पड़ताल करने के लिए एएसआई ने रडार और जीपीआर तकरीर की मदद लेने का फैसला किया है। इसके लिए टीम ने आईआईटी कानपुर से संपर्क स्थापित किया है।
आईआईटी के निदेशक ने बताया कि एएसआई ने यह जानने की कोशिश की है कि क्या इस तकनीक से जांच के मामले में संस्थान उनकी कोई मदद कर सकता है। आईआईटी के विज्ञानियों की ऐसी कोई विशेषज्ञ टीम क्या एएसआई की मदद के लिए वाराणसी पहुंच सकती है।
पुरातात्विक खोज अभियानों में शामिल रह चुके आईआईटी के भूविज्ञानी प्रोफेसर जावेद मलिक ने बताया कि जीपीआर यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार ऐसी तकनीक है, जिससे किसी भी वस्तु या ढांचे को बगैर छेड़े हुए उसके नीचे जले हुए कंक्रीट धातु पाइप केबल या अन्य वस्तुओं की पहचान की जा सकती है!
इस तकनीक में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन की मदद से ऐसे सिग्नल प्राप्त किए जाते हैं जो यह बताने में सक्षम हैं कि किसी भी वस्तु के आंतरिक हिस्से में क्या क्या मौजूद है।
तकनीक का प्रयोग करने के दौरान इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणों को उस वस्तु या स्थान पर प्रवेश कराया जाता है, जिसकी जांच करनी होती है। लौटने वाली किरणों और ध्वनि आवृत्तियों का विश्लेषण कर निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। इस तकनीक का प्रयोग 1972 में चांद पर भेजे गए अपोलो-17 मिशन के दौरान भी किया चुका है।