स्टेट डेस्क। आज बिठूर के बिल्डर से 20 लाख रुपये की रंगदारी वसूलने वाले महाठग- संतोष कुमार सिंह की कहानियां लगातार सामने आ रही हैं।
वहीं पुलिस भले ही उसके आला अफसरों से संबंधों पर पर्दा डालने का काम कर रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि अफसर उससे काफी प्रभावित थे। यहां तक कि आला अफसर अपने अधीनस्थों से उसे सर कहने का दबाव डालते थे।
पायनियर ग्रीनसिटी के निदेशक निखिल शर्मा की तहरीर पर 20 अगस्त को बिठूर थाने में वाराणसी के थाना जनसा के गांव कतवारुपुर गोराई निवासी संतोष सिंह उर्फ अभिषेक सिंह और उसके ड्राइवर धर्मेन्द्र कुमार यादव के खिलाफ रंगदारी वसूलने का मुकदमा दर्ज किया गया था, जिसके बाद दोनों को लखनऊ एसटीएफ ने गिरफ्तार कर लिया था। आरोप है कि खुद को प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रतिनिधि बताकर संतोष सिंह ने बिल्डर निखिल शर्मा से 20 लाख रुपये की रंगदारी वसूली थी।
इस मामले में संतोष सिंह से जुड़ी कहानियां सामने आ रही हैं कि वह कैसे आला अफसरों से लेकर आम जनमानस में अपनी ऊंची पहुंच की धौंस जमाता था। कभी कानपुर में तैनात रहे एक इंस्पेक्टर के पास संतोष सिंह ने करीब दो साल पहले किसी जांच को लेकर फोन किया था। साइड लाइन पोस्टिंग झेल रहे इंस्पेक्टर को मलाईदार पोस्टिंग के लिए संतोष सिंह ने चारा डाला और काम करने को कहा।
इसके बाद संतोष सिंह ने इंस्पेक्टर के डीजी को फोन मिलाकर उसे अच्छी पोस्टिंग देने को कहा। डीजी चंद दिनों पहले ही रिटायर हो चुके थे, जिसकी जानकारी संतोष को नहीं थी। इसके बाद उसने महकमे के एडीजी को फोन किया।
एडीजी ने इसके बाद इंस्पेक्टर से बात की। बातचीत के दौरान इंसपेक्टर ने संतोष सिंह का नाम लिया तो एडीजी ने उसे डांटा और कहा कि संतोष सिंह नहीं सर बोला करो। वह बड़ी हैसियत रखते हैं और बनाने व बिगाड़ने की औकात रखते हैं। वहीं दूसरी ओर पुलिस महकमे में ही एक वर्ग ने एसआइटी गठन पर सवाल खड़े किए हैं। उनका मानना है कि आरोपित आइएएस और आइपीएस अफसरों पर है। ऐसे में एसीपी स्तर का अधिकारी कैसे उच्चाधिकारी की जांच कर सकता है।