Adarsh : कानपुर में टेरर फंडिंग को लेकर जांच एजेंसी एनआईए पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से जुड़े लोगों की तलाश में लगी हुई है। एजेंसी को एक दर्जन संदिग्ध लोगों की तलाश है। शहर के भी तीन से चार लोग रडार पर हैं। पीएफआई या उसकी अन्य संस्थाओं से उनका जुड़ा होना बताया जा रहा है। भविष्य में बड़ी कार्रवाई हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक शहर में मंगलवार को एनआईए की टीम ने छापा मारा था। दलेलपुरवा से दो संदिग्ध उठाए थे। इसमें से एक संदिग्ध पीएफआई एजेंट का भाई है। हालांकि छापे की सूचना पर जब पुलिस पहुंची थी तो परिजनों ने कहा था कि कोई टीम नहीं पहुंची।
यह भी बताया था कि जिसको उठाए जाने की बात हो रही है, वह पिछले डेढ़ साल से घर से बाहर है। जानकारी के मुताबिक दोनों संदिग्ध जांच एजेंसी की हिरासत में हैं। उनसे लगातार पूछताछ जारी है। साक्ष्य जुटाने के बाद उन पर कार्रवाई की जाएगी।
पीएफआई से जुड़े लोग शहर में चंदा जुटाने में भी लगे रहते थे। किसी दुकान या अन्य सार्वजनिक जगहों पर इससे संबंधित बॉक्स आदि देते थे। उस पर चंदा देने संबंधी अपील लिखी रहती थी। इसमें कौन-कौन लोग शामिल थे, जांच व सुरक्षा एजेंसियां इनका ब्योरा तैयार कर रही हैं। फंडिंग के बिंदु पर चल रही जांच में ये तथ्य शामिल किया है। इन पर भी शिकंजा कसा जाना लगभग तय है।
शहर में पीएफआई से जुड़े करीब 16 सक्रिय सदस्य हैं। इनमें से पांच सदस्यों को पुलिस ने सीएए बवाल के दौरान गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। तीन सक्रिय सदस्य नई सड़क पर हुए बवाल के मामले में जेल में बंद हैं। सूत्रों के मुताबिक जिन संदिग्धों को जांच एजेंसी ले गई है, उसकी तलाश करीब दो वर्षों से की जा रही थी।
पीएफआई शहर में काफी सालों से सक्रिय है। संगठन के लोग कई बार शहर में अधिवेशन भी कर चुके हैं। माना जाता है कि पीएफआई का गठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी के विकल्प के तौर पर किया गया था। सिमी को वर्ष 2006 में कट्टरपंथी सोच व आतंक को बढ़ावा देने के आरोप में प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसीलिए वर्ष 2007 में पीएफआई का गठन हुआ। हालांकि पीएफआई हमेशा दावा करता रहा है कि वह देश की एकता, सांप्रदायिकता के खिलाफ और मुस्लिमों को उनका अधिकार दिलाने का कार्य करता है।