कानपुर। कानपुर नगर में महापौर पद की कुर्सी का खेल अब त्रिकोणीय मुकाबले में फसं गयी है। सभी राजनीतिक पार्टियां 25 फीसदी ब्राह्मण मतदाताओं को मनाने में जुटी हैं तो मुस्लिम और दलित पार्षद उम्मीदवारों के सहारे भी नाव को परा लग जाने की आशा लगाए बैठे हैं। वैसे तो कानपुर का ब्राह्मण वोटर कांग्रेस पार्टी का माना जाता था। लेकिन समय और हालात बदले, तो ब्राह्मण वोटर बीजेपी के साथ चला गया। कानपुर में कांग्रेस, बीजेंपी और सपा ने ब्राह्मण प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है।
जिसकी वजह से कानपुर में मेयर पद का चुनाव त्रिकोणीय हो गया है। कांग्रेस पार्टी ने जमीनी कार्यकर्ता एआईसीसी सदस्य और प्रदेश सचिव विकास अवस्थी की पत्नी आशनी अवस्थी को टिकट दी है। बीजेपी ने एक बार फिर से निर्वतमान मेयर प्रमिला पांडेय को एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं, सपा पहली बार फाइट में आई है। सपा ने आर्यनगर सीट से दो बार के विधायक अमिताभ वाजपेई की पत्नी वंदना वाजपेई को टिकट दी है।
कानपुर में 22.17 लाख वोटर हैं, जिसमें से 6 लाख से अधिक ब्राह्मण वोटर हैं। लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी की बात है कि इस बार ब्राह्मण वोटरों ने चुप्पी साध रखी है। यही चुप्पी बीजेपी की टेंशन बढ़ा रही है। दरअसल ब्राह्मण वोटर बीजेपी का मतदाता माना जाता है। जानकारों का मानना है कि इस नगर-निगम चुनाव में ब्राह्मण वोट किसी एक पार्टी जाता दिख रहा है। बल्कि तीनों प्रमुख पार्टियों में बट सकता है। सभी पार्टियां ब्राह्मण वोटरों को लुभाने में जुटी हैं।
यदि ब्राह्मण वोट बैंक में बटवारा होता है, तो इसका सीधा नुकसान बीजेपी को होता दिख रहा है। वहीं, कानपुर के मुस्लिम वोट बैंक में कांग्रेस और सपा की नजर है। इसके साथ ही तीनों प्रमुख दल ओबीसी और एससी वोट बैंक में सेंध लगाने में जुटे हैं। जिसकी वजह से कानपुर का मुकाबला बड़ा ही दिलचस्प हो गया है, कोई भी पार्टी एक तरफा जीत का दावा नहीं कर रही है।