राजू श्रीवास्तव के जाने का मतलब…

कानपुर

Janmejay Mishra : हम सब के प्यारे दुलारे, घर घर जाने पहचाने जाने वाले बड़े बुजुर्गों माताओं बहनों बच्चों और युवाओं के प्रिय हास्य कलाकार गजोधर उर्फ राजू भैया हम सबको छोड़ कर चले गए….. वैसे जाना तो सबको ही हैं और राजू भैया भी चले गए, लेकिन राजू भाई जाते जाते बहुत कुछ छोड़ गए और बहुत कुछ अपने साथ लेकर चले गए……….
……. जैसा कि राजू भैया खुद बताते थे कि उनका बचपन पुराने कानपुर के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से शुरू होता है जहां पढ़ने के लिए कुछ सरकारी स्कुल, इलाज के लिए कुछ सरकारी अस्पताल, जीवन यापन के लिए कपड़े की मिलें और माता पिता का अनवरत जीवन संघर्ष की जद्दोजहद……

उत्तर भारत की प्राचीन लोक गायकी और हास्य विधाओं में निपुण राजू भाई के पिता बलई काका अपने समय के प्रसिद्ध लोक कलाकार थे l ये वो समय था जब सिनेमा, आजादी के बाद भारत के औद्योगीकरण और उससे उपजी मध्यम वर्ग की सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का बखूबी चित्रण कर रहा था l बलई काका की विरासत और अमिताभ बच्चन के सिनेमाई पदार्पण ने राजू भाई के अंदर एक ऐसा हास्य बोध पैदा कर दिया जिसने आगे चलकर अमिताभ बच्चन के चरित्रों की भांति ही हास्य रूप में सामाजिक समस्याओं पर गहरी चोट की…. भारत के लाखों नवजवानों की भांति राजू भैया को भी बम्बई की चकाचौंध ने अपनी ओर खींच लिया, जिसके परिणाम स्वरूप तेजाब, मैंने प्यार किया जैसी कुछ फ़िल्मों में काम करने का मौका मिला, जिनका अंदाज भी हास्य ही था…….

सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक बदलाव के दौर ने 21 वीं सदी को भी बदल कर रख दिया और अब टीवी और भी अधिक रंगीन और मनोरंजक हो गया l जनता की बढ़ती मनोरंजन की भूख ने टीवी के चैनलों की संख्या के साथ ही कॉमेडी युक्त मनोरंजक कार्यक्रमों की बाढ़ लगा दी l आम आदमी को रोजमर्रा की भाग दौड़ वालीं जिंदगी के तनाव और जीवन संघर्ष से मुक्त होकर सुकून के कुछ पल हासिल करने के लिए एक नया ठिकाना मिल गया, और इसी समय हास्य की दुनिया मे पदार्पण हुआ गजोधर भैया उर्फ राजू श्रीवास्तव का……

राजू श्रीवास्तव को आज हम सिर्फ इसलिए नहीं याद करना चाहेंगे या आने वाले. समय में राजू भैया सिर्फ इसलिए नहीं याद किए जाएंगे कि वो एक बेह्तरीन हास्य कलाकार थे बल्कि इसलिए क्यूंकि उन्होंने टीवी के फूहड़ और द्विअर्थी चुटकुले नुमा मनोरंजन की जगह अपने आसपास के वातावरण, संस्कृति, लोकजीवन, आम आदमी की रोजमर्रा की समस्याओं और जीवन शैली से उत्पन्न हास्य को अपने प्रस्तुतीकरण का आधार बनाया l सम सामायिक मुद्दो को कनपुरिया अंदाज, भाषा शैली और देशज चरित्रों जैसे गजोधर, संकटा आदि को घर घर तक पहुंचा दियाl राजू भाई को कानपुर हमेशा इसलिए याद करेगा क्यूंकि आपने कनपुरिया बोली, भाषा, अंदाज, जिंदादिली, बेबाकी, हाजिर जवाबी और कनपुरिया बतकही को राष्ट्रीय फलक तक पहुंचा दिया l जितना राजू भाई कानपुर में बसे हुए थे उतना ही कानपुर राजू भाई के अंदर समाया हुआ था और यही कारण था कि जब राजू श्रीवास्तव मंच पर बोलते थे तो लगता था कि कानपुर बोल रहा हैl

उन्होंने उसी कानपुर को दुनिया के सामने एक ब्रांड बनाकर स्थापित कर दिया, जिसका स्वाद शायद पूरी दुनिया के लिए और फिल्म इंडस्ट्री के लिए बिल्कुल नया था l इसी देशी कनपुरिया स्वाद से प्रभावित होकर तमाम मुंबईया डाइरेक्टर कानपुर खिंचे चले आए और तनु वेड मनु, बंटी और बबली, टशन और दबंग जैसी अनेकों फ़िल्में लोकप्रिय हुईl वैसे तो कानपुर के कई ब्रांड दुनिया में फेमस है जैसे जे के टायर, पान पराग, लाल इमली आदि l लेकिन खुद कानपुर को एक ब्रांड बनाकर पूरी दुनिया में स्थापित करने का श्रेय राजू श्रीवास्तव को जाता हैl

राजू भाई ने अपने चुटकुलों में अपने आसपास की संजीदा घटनाओं को बड़े ही हास्य पूर्ण तरीके से चित्रित करते हुए हंसी हंसी में मुद्दों को गम्भीर चोट दी है l चाहे वो आजकल की शादियों का बफर सिस्टम हो या बारात की लाइटिंग, चाहे वो युवाओं के कमर की खिसकी हुई जींस हो या फर्जी बाबाओं का गोरख धंधा और चाहे वो कानपुर के चौराहों पर बैठे हुए गाय बैल हो l राजू ने अपनी विधा में किसी को बख्शा नहीं है और किसी का अपमान भी नहीं कियाl

राजू श्रीवास्तव का हास्य बोध आम आदमी की छोटी सी समस्या से लेकर हर खास आदमी तक को चोट करता है जैसे मुंबई के माफिया से लेकर लालू यादव की ससुराल और ऐरोप्लेन की एयर होस्टेस से लेकर कानपुर के रिक्शा वाले तक, सब उनकी नजर में थे और सब उनकी ज़द मे l राजू भाई की हास्य विधा की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वो किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाती, अपमानित नहीं करती और इसीलिए लालू यादव से लेकर अमिताभ बच्चन तक के सामने ही राजू उन पर बने आइटम सुनाते थे और वो लोग आनंद लेते थेl

राजू भाई ने एक मंचीय कलाकार के साथ ही साथ अनेक फ़िल्मों में काम किया और फिल्म इंडस्ट्री में एक अलग छाप बनाई l राजू भाई एक हास्य कलाकार होने के साथ हो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बेहद ही संजीदा रहते थे और कानपुर शहर की समस्या हो या स्वच्छता से लेकर कोरोंना जैसे राष्ट्रीय विषयl आपने हमेशा सामाजिक सरोकारों में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन बाखूबी कियाl

कानपुर शहर का नागरिक होने के नाते, कानपुर शहर की साँस्कृतिक पहचान होने के नाते राजू भाई हमेशा कानपुर का गौरव रहेंगे l l राजू भाई जैसे लोग कभी कभी ही आते हैं और अपना किरदार बाखूबी निभा कर चले जाते हैं और राजू श्रीवास्तव भी अपने संघर्ष की पीड़ा को अपने अंदर समेटे हुए सबको हंसना सीखा गए l राजू भाई भले ही आज हमारे बीच ना हो किन्तु वो अपनी हास्यपूर्ण संजीदा अदायगी से सदैव हर कनपुरिया के दिलों में धड़कते रहेंगे…….

जनमेजय मिश्र
(लेखक एक समाज विज्ञानी है)