1857 की क्रान्ति और कानपुर : 24 घंटे मे जितना खजाना चाहे लूटे ,बाद मे नही

कानपुर

कानपुर/ अनूप शुक्ल। पुराने कानपुर के सुप्रसिद्ध तिवारी परिवार मे पंडित बद्रीनाथ तिवारी जी हुए। आपको अफीम का शौक था। पं. बद्रीनाथ जी के सम्बन्ध मे प्रसिद्ध है कि अफीम का नशा होने पर वह चाँदी के दो सौ शाही रूपये लेकर अपनी कोठी के पास कुंआ पर बैठ जाते और एक एक कर रूपया कूप मे डाल देते। कूप मे रूपया डालने से जो ध्वनि होती उससे उन्हे अलौकिक आनन्द प्राप्त होता था। कुंआ मे इतना रूपया चला गया कि धीरे धीरे कूप का श्रोत ही बंद हो गया तब घर वालो ने जाना और रूपये निकलवाये।

पंडित बद्रीनाथ तिवारी के समय ही कानपुर मे १८५७ की क्रान्ति हुई। तिवारी जी के घर पर मन्नालाल जी का जनेऊ था इसलिए जनेऊ के गाड़ियो पकवान जैसे पिराकादि अर्थात गोल गोल माठे, लड्डू और लम्बे लम्बे पीड़ो की शक्ल के भीतर से पाले खाद्य पदार्थ डलियो मे उसी तहखाने मे रखा था जिसमे खजाना था । वहाँ पर आमदनी व वसूली का आया रूपया भी बोरियो मे रखा गया था और पहले का भरा खजाना तो था ही | इधर विभिन्न गांवो को लूटते हुए अंग्रेज व उनकी फौज पुराना कानपुर की तिवारी जी की कोठी को घेर लिया | पंडित बद्रीनाथ तिवारी ने घर की महिलाओ व बच्चो को गंगा की रेत पर भेजकर खजाने का द्वार खोल कर अंग्रेजो व फौज से कहा कि पुराना कानपुर मे कही लूटपाट न करके खजाने से २४ घंटे मे जितना चाहो लूट लो, खुले खजाने को ढो ले जाओ २४ घंटे बाद पुराना कानपुर छोड़ना होगा |

अंग्रेज अपनी फौज के साथ खजाने के सकरे दरवाजे से एक एक कर तहखाने मे दाखिल हुए। शेष फौज भवन के परिसर मे खड़ी रही। अंग्रेज सैन्य टुकड़ी ने जब तहखाने मे सैकड़ो टोकरो मे गोल गोल व लम्बे लम्बे मिठाई पोले मिठाई के सामान देखे तो उस मिठाई को देशी गोला बारुद व लड़ाई का सामान समझा और झिझक कर बाहर निकल आए कई घंटे इसी उलझन मे बीत गये। अंत मे हिन्दु व सिख सैनिक अन्दर गये और बाहर आकर बताया कि रखा सामान देशी गोला बारुद नही बल्कि खाने का सामान है। पूरी फौज भूँखी थी और सभी रखी मिठाईयो पर मरभुखो की तरह टूट पड़े। पहले तो वह सब सामान सब मे बांटा गया और भरपेट खाने के बाद ढोया गया, इसके बाद खजाना लूटा गया। तरह तिवारी जी की कोठी मे २४ घंटे लूट होती रही। कई वर्ष बाद अंग्रेज सरकार ने तिवारी जी से पूँछा कि कितना रुपया लूटा गया है ? लेकिन तिवारी जी की ओर से कोई उत्तर नही दिया गया।

यह भी पढ़े …