कानपुर, भूपेंद्र सिंह। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को लेकर उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व सचिव युद्धवीर सिंह के खिलाफ सरकार के साथ अब धोखा देने का आरोप सिद्ध आते ही संघ ने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं! उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव अरविंद श्रीवास्तव ने पूर्व सचिव के किए इस कृत्य पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है! उन्होंने पूर्व सचिव से यह सवाल किए हैं कि जब पूर्व सचिव कूलिंग पीरियड में चल रहे हैं तो वह किस हैसियत से सरकार के साथ स्टेडियम निर्माण को लेकर एमओयू कर सकते हैं!
गौरतलब है कि खेल विभाग के निदेशक आरपी सिंह ने भी इस पर कड़ा एतराज जताते हुए मुख्यमंत्री से कार्यवाही करने की गुहार लगाई थी यूपीसीए के सचिव अरविंद श्रीवास्तव ने उनसे लिखित रूप से यह जानकारी मांगी है कि संघ को पता चला है यूपीसीए की ओर से यूपी इन्वेस्टर्स समिट-2023 में वाराणसी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। हम जानना चाहते हैं कि किस अधिकार के तहत एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
युद्धवीर सिंह से स्पष्टीकरण मांगा गया है-क्या इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत थे, यदि हां, तो कृपया इसे प्रदान करें। इसके अलावा, कृपया उचित कार्रवाई करने के लिए उक्त एमओयू मूल रूप में प्रदान करें।साथ ही यूपीसीए के अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण, वेतन वृद्धि, वेतन वृद्धि के संबंध में अनुचित और अपारदर्शी तरीके से किया जा रहा है, जिसे स्पष्ट नहीं किया जा सकता,उनकी मनमानी से तबादले व वेतनवृद्धि की जा रही है।
अनुच्छेद 7 UPCA के पदाधिकारियों की शक्तियों और कर्तव्यों से संबंधित है। यूपीसीए के एसोसिएशन ऑफ आर्टिकल्स के अध्याय 5 में यूपीसीए के प्रबंधन के बारे में विस्तार से बताया गया है। हाल के दिनों में जितने भी मैच हुए हैं, उन्हें हमारे यहां के स्थान पर इकाना स्टेडियम, लखनऊ को आवंटित किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार स्वयं यूपीसीए के संविधान द्वारा निर्णय लेने से प्रतिबंधित होने के बावजूद, सभी निर्णय ले रहे हैं और यूपीसीए के अधिकारियों को आपके पक्ष में बिना किसी अधिकार के यूपीसीए की ओर से कार्य करने के लिए अधिकृत कर रहे हैं। इस पत्र के 15 दिनों के भीतर ही युद्धवीर सिंह को उत्तर देने के लिए कहा गया है कि और साथ ही ये भी पूछा गया है कि अगर उनके खिलाफ सभी प्रमाण हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए।