एक संघर्ष की कहानी जिसने मुलायम सिंह को नेताजी बना दिया

उत्तर प्रदेश

DESK : उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. वहीं मुलायम सिंह यादव के निधन पर उनके बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. नेताजी मुलायम सिंह यादव के अस्वस्थ होने के बाद सैफई के लोगों के साथ ही नेताजी के करीब से जानने वाले लोगों ने नेताजी के छात्र जीवन से लेकर कुश्ती के दंगल शिक्षक जीवन, राजनीति के चरखा दांव के साथ ही उनके संघर्ष की कहानी बताई. सैफई निवासी और नेताजी के परिवार के एक सदस्य दशरथ सिंह ने बताया कि नेताजी की प्रारंभिक शिक्षा कक्षा 1 से लेकर 5 तक सैफई के गींजा गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई थी.

दशरथ सिंह ने आगे बताया कि, कक्षा 6 से कक्षा 12 तक करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाई की जिसके बाद बीए और एमए शिकोहाबाद से किया. पहलवानी के शौकीन मुलायम सिंह की कुश्ती की कला देखकर चौधरी नत्थू सिंह यादव ने अपनी जसवंत नगर विधानसभा सीट मुलायम सिंह को दे दी थी जिसके बाद मुलायम सिंह यादव पहली बार जसवंत नगर विधानसभा से 1967 में चुनाव लड़े और पहला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद राजनीति में फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

कुश्ती में लगाते थे चरखा दांव
दशरथ सिंह ने बताया कि, नेताजी की एक विशेषता थी कि उन्होंने हमेशा गांव के सभी लोगों को जोड़ने का काम किया, चाहे वह किसी भी जाति धर्म का हो. लखनऊ से जब भी नेताजी अपना व्यस्त समय निकालकर सैफई आते थे तो गांव के सभी लोगों को बुलाकर अपने साथ बिठाकर हाल चाल लेते थे. नेता जी ने ही सबसे पहले पश्चिम बंगाल की तर्ज पर समाजवादी पार्टी में बूथ कमेटी बनाने का काम किया. यह 21 सदस्यीय बूथ कमेटी गांव में सामाजिक कार्य करती थी. नेताजी मुलायम सिंह यादव ने सिर्फ सैफई ही नहीं आसपास के ग्रामीण अंचल में वह काम करके दिखाया है जिससे आज सैफई का नाम देशभर में जाना जाता है. सैफई वासियों को नेताजी ने विकास की वह तस्वीर दिखाई है जो हम लोग कभी नहीं देख सकते थे. नेताजी कुश्ती में चरखा दांव लगाते थे. यह उनका प्रसिद्ध दांव था और राजनीति में भी उन्होंने कई चरखा दांव लगाए और बताया कि राजनीति कैसे की जाती है.

सैफई ग्राम प्रधान ने क्या बताया
वहीं वाल्मीकि समाज से आने वाले वर्तमान में सैफई के ग्राम प्रधान रामफल वाल्मीकि बताते हैं कि नेताजी बचपन से ही बड़े होनहार रहे. नेताजी शुरू से ही गांव की सभी जातियों के लोगों को एकसाथ लेकर चले. आज जहां चंदगी राम स्पोर्ट्स स्टेडियम है यहां कभी खेत हुआ करते थे और यहां पर नेताजी अखाड़ा बनाकर दंगल किया करते थे. नेताजी जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब चंदगी राम जी को लेकर यहां पर आए थे उसके बाद ही यहां पर चंदगी राम जी के नाम से स्टेडियम बनाया गया जहां पर एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम है और कुश्ती के लिए अखाड़ा भी बना हुआ है.

शांत रहते हुए सबको हराया
ग्राम प्रधान रामफल वाल्मीकि ने आगे बताया कि, नेताजी का प्रसिद्ध चरखा दांव देखकर ही चौधरी नत्थू सिंह ने उन्हें 1967 में जसवंत नगर विधानसभा से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था जिसको सुनकर नेताजी के पिता सुघर सिंह ने पहली बार मना कर दिया था. उस वक्त नेताजी जैन इंटर कॉलेज करहल में शिक्षक के पद पर नौकरी कर रहे थे लेकिन सभी की सहमति से नेताजी ने जसवंत नगर से कांग्रेस के लाखन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया और नेताजी ने अपने पहले ही चुनाव में कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी के प्रत्याशी को आसानी से हरा दिया. नेताजी के विरोध में भी कई लोग लगे हुए थे लेकिन मुलायम सिंह ने शांत रहते हुए अपने राजनीति के चरखा दांव से सभी को परास्त कर दिया

कॉलेज के प्रवक्ता ने क्या बताया
जैन इंटर कॉलेज के हिंदी प्रवक्ता रमेश सिंह ने बताया कि, नेता जी बहुत ही विशाल व्यक्तित्व के थे. उस समय जो भी दबा कुचला निचले वर्ग का कोई भी व्यक्ति उनके पास आता था वे पूरी तरह उसके प्रति समर्पित हो जाते थे. उस समय जैन इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले गरीब छात्रों के लिए फीस माफ करवाना, वजीफा दिलवाना, स्कूल यूनिफार्म दिलवाना यह सब नेता जी के काम थे. छात्र के तौर पर नेताजी ने जैन इंटर कॉलेज में कक्षा 9 में 1954 में दाखिला लिया था. सैफई से जैन इंटर कॉलेज करहल तक साइकिल से आते थे और कभी-कभी तो नेताजी पैदल भी चलकर कॉलेज तक आते थे. नेताजी जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाने के साथ-साथ ही समाजवादी विचारधारा से धीरे-धीरे जुड़ते गए और उस समय के बड़े-बड़े कांग्रेसी नेताओं को अपनी मृद भाषा से जोड़ते चले गए.

शिक्षक सतीश ने क्या बताया
जैन इंटर कॉलेज के एक अन्य शिक्षक सतीश जो की कविताएं भी लिखते हैं ने बताया कि नेताजी की कार्य प्रणाली को बेहद करीब से देखा है. नेताजी की सबसे बड़ी विशेषता यह रही थी कि नेताजी के जीवन काल में बचपन से लेकर अभी तक जितने भी लोग उनसे जुड़ते गए उन्होंने कभी भी उन्हें अपनी स्मृति से अलग नहीं किया और यही कारण है कि अपने क्षेत्र के लोगों को ना भूलने के चलते लोग आज उनके दीवाने हैं. नेताजी की एक और बड़ी विशेषता रही है कि साहित्य और कविताओं से जुड़े हुए थे. लोगों को नेता जी ने हमेशा सम्मान दिया है और इसी सम्मान ने फर्श पर खड़े व्यक्ति को अर्श तक पहुंचाने का काम किया है. नेताजी के मन में जनता के लिए जो अपनतत्व दिखाई देता है इस छोटे कद में बड़ा व्यक्तित्व दिखाई देता है. इसी के चलते जब जब नेताजी अस्वस्थ होते हैं तो उनके स्वस्थ होने के लिए हजारों हाथ दुआओं के लिए खड़े हो जाते हैं.

साथी विश्राम सिंह ने क्या बताया
नेताजी के एक और साथी विश्राम सिंह जो नेताजी से उम्र में 2 साल बड़े हैं ने बताया कि हमारी मुलाकात 1957 में हुई. नेताजी की रूचि राजनीति शास्त्र विज्ञान में ज्यादा थी. नेताजी की सबसे बड़ी खूबी थी कि लोगों से मिलना नहीं छोड़ते थे. जब 1969 में चुनाव हारे तो भी उसके बाद गांव-गांव जाकर लोगों से मुलाकात की. जिन लोगों ने नेताजी का साथ दिया उनको हमेशा उन्होंने मान सम्मान दिया. चुनाव के दौरान हम और मुलायम सिंह दोनों साइकिल से ही क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए जाते थे. उनका स्वभाव ऐसा था कि लोग उनसे जुड़ जाते थे. 1969 और 1980 में मुलायम सिंह जसवंत नगर विधानसभा से दो चुनाव मजबूत कांग्रेस के प्रत्याशियों से हारे थे जो कि बहुत ही कम अंतर से हारे थे. केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी इसलिए कहीं ना कहीं इन चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों को केंद्र सरकार की मदद भी मिल जाती थी.

अंग्रेजी के शिक्षक ने क्या बताया
वही इटावा के रहने वाले अंग्रेजी के शिक्षक अवध किशोर बाजपाई बताते हैं कि, सन 1980 में नेताजी मेरे पास खुद आए थे और उन्होंने मुझसे कहा कि तुम अखिलेश को अंग्रेजी पढ़ाने की जिम्मेदारी लो. उसके बाद सबसे पहले अखिलेश यादव का दाखिला सेंट मैरी स्कूल में कराया. मेरे लिए यह बड़ी गौरव की बात थी कि नेताजी मुलायम सिंह यादव खुद मेरे घर चलकर आए और मुझे अखिलेश की पढ़ाई की जिम्मेदारी दी. इटावा के सेंट मेरी स्कूल में मैंने और शिवपाल सिंह ने जाकर अखिलेश का एडमिशन कराया था. सेंट मैरी के बाद अखिलेश के एडमिशन के लिए सिंधिया स्कूल ग्वालियर मैं और नेताजी मुलायम सिंह यादव गए.

अंग्रेजी के शिक्षक अवध किशोर ने आगे बताया कि, 1983 में जब हम लोग वहां गए तो सिंधिया स्कूल की चढ़ाई पर गाड़ी बंद हो गई जिसके बाद नेताजी चढ़ाई देखकर डर गए और उन्होंने कहा कि यहां अखिलेश को आने-जाने में दिक्कत होगी इसलिए यहां एडमिशन नहीं कराएंगे. उसके बाद हम लोग सीधे सिंधिया स्कूल से मिलिट्री स्कूल धौलपुर गए जहां पर स्कूल नेताजी को पसंद आया. मिलिट्री स्कूल में एडमिशन के लिए अखिलेश को तैयारी करानी थी जिसके लिए इटावा में नेताजी के आवास पर मैं अखिलेश को पढ़ाने जाया करता था जहां एक छोटा कमरा जिसमें शिवपाल की पत्नी सरला और नेताजी के छोटे भाई राजपाल यादव की पत्नी भी साथ रहती थी. उस छोटे से कमरे में मैंने अखिलेश को मिलिट्री स्कूल के एडमिशन की तैयारी कराई. जब उस छोटे से कमरे में अखिलेश पढ़ाई करते थे तब शिवपाल की पत्नी सरला यादव और एक और नेताजी की छोटी बहू छोटे से कमरे में अलग खड़ी रहती थीं.

अवध किशोर ने बताया कि, अखिलेश की पढ़ाई की जिम्मेदारी मेरे और शिवपाल सिंह के कंधो पर थी. जब भी अखिलेश को मिलिट्री स्कूल धौलपुर लाने या छोड़ने जाने का काम होता था तब मैं और शिवपाल ही अखिलेश को धौलपुर से लेने और छोड़ने जाते थे. मैंने नेताजी के संघर्ष को शुरू से देखा है. नेताजी से ज्यादा संघर्षशील नेता आज कोई भी नहीं हो सकता.

मिठाई विक्रेता ने क्या बताया
वहीं इटावा शहर के एक मिठाई विक्रेता सुरेश यादव बताते हैं कि हमारा 3 पीढ़ियों से मिठाई का काम चल रहा है. नेताजी के हमारे पिता से विशेष संबंध हैं. हमारे पिताजी नेता जी को अपने बेटे की तरह मानते थे इसलिए नेताजी जब भी इटावा आते थे तब वह हमारे दुकान पर बराबर आते थे. भले ही वह मुख्यमंत्री रहे इस दौरान जब भी नेताजी इटावा आते थे तब मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का काफिला हमारे दुकान की तरफ मुड़ जाता था. नेताजी को हमारे दुकान की जलेबी और कचौड़ी विशेष पसंद थी और वह इनको खाने के लिए खुद दुकान तक आते थे.