यूक्रेन में युद्ध के दौरान एक सप्ताह तक अपनी जिंदगी बचाने की कहानी, भुक्तभोगी मेडिकल छात्र अमित की जुबानी

बिहार मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर। अपना कैरियर बनाने के लिए यूक्रेन जाकर मैंडिकल की पढाई करने वाले छात्रों को युद्ध के दौरान क्या क्या भुगतना पडा, अपनी जान बचाने और वतन वापसी के लिए क्या क्या जद्दोजहद करना पडा ,मुजफ्फरपुर का अमित इसका जीता-जागता उदाहरण है। कैसी रही यूक्रेन के युद्ध के हालात में एक सप्ताह तक अपना जीवन बचाने की कहानी, पढिए अमित की जुबानी।

इसमें ऑपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन से अपने स्वदेश बिहार के मुजफ्फरपुर लौटे अमित ने 26 फरवरी से 4 मार्च तक के हालात को साझा किया हैं। अमित मुजफ्फरपुर जिले के सर गणेशदत्त नगर लेन नंबर पांच के निवासी हैं और वर्तमान में यूक्रेन के एक मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। युद्ध के हालात बया करते हुए कहते है,’24 फरवरी को युद्ध शुरु हुआ और 26 फरवरी को वे अपने 59 साथियों के साथ अपने हॉस्टल से निकल गए।

अपने हॉस्टल से निकलकर लगभग 400 किलोमीटर की दूरी अपने निजी बस द्वारा ,उसके बाद भीषण बर्फबारी में तीन घंटे तक लगातार खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना। ठंड से चक्कर खाकर गिरने की स्थिति और पुनः अपने एक अन्य साथी जो यूक्रेनी भाषा पर अपनी मजबूत पकड़ रखता था उसकी मदद से यूक्रेनी सेना द्वारा रिलीज होने की दास्तान। ‘जब युद्ध छिड़ा तो वह फरवरी की 24 तारीख का दिन था।

26 तारीख को जब हमारी आंख खुली तो बमों के धमाकों से खुली। बाहर आकर देखा तो युद्ध छिड़ चुका था। हमलोग तत्काल बंकर में चले गए। जब एक दो घंटे बाद हम बंकर से बाहर आए तो पता चला कि हमारे बगल में एक पोडलिया सिटी है जहां गोलीबारी हुई थी। उसी वक्त एक एडवाइजरी यह आई थी की किसी भी छात्र को बगैर एंबेसी को बताए बाहर नहीं जाना है।

पर हम छात्रों ने यह विचार किया की जब युद्ध छिड़ ही चुका है तो यहां रुकने का कोई मतलब ही नहीं है। हम विनिक्षा से निकल जायेंगे तो ठीक रहेगा। फिर हम लगभग 59 छात्र मिलकर एक बस बुक किए और 11 बजे रोमानिया के पुरोबोनोसिरू बॉर्डर के लिए निकल पड़े। यह लगभग 400 से 500 किलोमीटर की यात्रा थी। रास्ते में जाम था और हमारे ड्राइवर ने मार्शल लॉ लागू हो जाने के बावजूद भी लाइन तोड़कर आगे निकलने का प्रयास किया इस कारण यूक्रेन के मिलिट्री ने हमें 3 घंटे के लिए रोक दिया।

तीन घंटे रुकने के बाद हमारे एक मित्र जिनकी यूक्रेनियन काफी अच्छी थी , उन्होंने यूक्रेन मिलिट्री से बात की तो बात करने के बाद हमारी बस को छोड़ दिया गया। 27 तारीख को 3:00 बजे हम लोग बॉर्डर से 10 किलोमीटर पहले उतार दिए गये वहां से 3 घंटे तक पैदल चलने के बाद करीब सुबह 6:00 बजे बॉर्डर के इस ओर पहुंच गए थे। पर हमलोगों को बॉर्डर पार करना था।

बॉर्डर पर सुबह के 6:00 बजे 600 से 700 बच्चे लाइन में खड़े थे जबकि वहां 6:00 बजे सूर्योदय नहीं होता है सूर्योदय 7:00 बजे के करीब होता है। जब हमारा ग्रुप वहां पहुंचा भीड़ देखकर हम लोगों ने सोचा कि हमारा नंबर कब आएगा आखिर करता क्या हम लोग भी उसी लाइन में खड़े हो गए तो वहां के बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स ने बताया की बॉर्डर 5 घंटे बाद खुलेगी।

इस जानकारी के मिलने के बाद हम लोग पास के पेट्रोल पंप पर चले गए इस बीच काफी सारे बच्चे वहां जमा हो गए। कोई 2 किलोमीटर पैदल चलकर आया था कोई 5 किलोमीटर पैदल चलकर आया था। देखते ही देखते वहां हजारों छात्रों की भीड़ लग गई लेकिन तब तक बॉर्डर नहीं खुला था अगले दिन हम लोग पुनः खड़े हुए उस रात बहुत तेज बर्फबारी हुई थी और तापमान -5 डिग्री के करीब था हम लोग का खड़े-खड़े बुरा हाल था मुझे चक्कर आ रहे थे फिर भी मैं खड़ा था और हमारा दोस्त कमलेश गस खाकर वहीं गिर गया।

उसको लेकर हम लोग वहां से बाहर हो गए उसके बाद एक और राजस्थान के लड़के की तबीयत खराब हुई। और जब मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया तो मैं बाहर जाकर एक पेट्रोल पंप पर आश्रय लिया। हम लोग अपने साथ बिस्किट चिप्स वगैरह खाने का सामान ले गए थे जिसे खाकर किसी तरह अपनी रात गुजारी और पुनः अगले दिन लाइन में लगने का इंतजार करते रहे जब हम 9:00 बजे हमलोग जगे तो देखा कि लाइन लग चुकी थी।

हम लोगों ने अपनी बारी का इंतजार किया क्योंकि हम काफी देर से जगे थे इसलिए हमलोग को शाम का 5:00 बज गया पर जब हम काउंटर पर पहुंचे तो पहले लड़कियों को भेजा गया उसके बाद हम लोग का नंबर आया। तब जाकर हम रोमानिया बॉर्डर में प्रवेश कर पाया रोमानिया बॉर्डर पर कुछ एनजीओ थे जो खाना पानी का बोतल और सिम कार्ड मुफ्त में दे रहे है।

वहां से 300 मीटर आगे जाकर भारतीय एंबेसी के लोग मिले हमें बस प्रोवाइड किया गया और स्टेडियम ले जाकर वहां तक दो दिनों तक हम लोग को रखा गया। उसके बाद हम को इंटरनेशनल एयरपोर्ट ले जाया गया जहां हम 180 बच्चों की लिसनिंग हुई और कुल 180 बच्चों को बसों से ले जाया गया और इंडिगो की फ्लाइट से हम लोग को दिल्ली लाया गया।

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